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हुआ है प्यार भी ऐसे ही कभी साँझ ढले / गुलाब खंडेलवाल
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हुआ है प्यार भी ऐसे ही कभी साँझ ढले
कि जैसे चाँद निकल आये और पता न चले
कसो तो ऐसे कि जीवन के तार टूट न जायँ
पड़े जो चोट कहीं पर तो रागिनी ही ढले
मिले न हमको भले उनके प्यार की ख़ुशबू
नज़र से मिल ही लिया करते हैं गले से गले
हज़ार पाँव लड़खडाये ज़िन्दगी के, मगर
चले ही आये हैं उन चितवनों की छाँह तले
गुलाब बाग़ में करते रहे हैं सबसे निबाह
चुभे जो पाँव में काँटें तो वे भी साथ चले