भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हुई बावरी है नंदा / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नख से शिख तक
हुई बावरी है नंदा
 
सिन्धु-पार से
कल सपनों ने टेरा है
हुआ अप्सराओं का
वहीँ बसेरा है
 
नये वक्त की
नई अप्सरी है नंदा
 
दूर देश में
भद्रजनों की हाट लगी
उसी हाट में
नंदा होगी अधनंगी
 
अपने युग की
स्वप्नसुंदरी है नंदा
 
नंदा की आँखों के
जादू के मारे
होंगे दुनिया भर के
आशिक बेचारे
 
हाँ, अरबों की
हुई लॉटरी है नंदा