हुई सुहानी भोर, गगन में सूरज आया।
जग को सोया देख, स्वयं भी है अलसाया॥
जगते आधी रात, ज़िन्दगी अजब अनोखी
खुलती है जब आँख, पहर भर दिन चढ़ आया॥
पंछी जाते जाग, चलें जब सुखद हवाएँ
गिनती के हैं लोग, जिन्होंने यह सुख पाया॥
भाँति भाँति के फूल, डाल पर झूल रहे हैं
तितली ने मुख चूम, इन्हें हर भोर खिलाया॥
कुहू कुहू के गीत, कोकिला फिरती गाती
मोरों का नव नृत्य, हृदय को अतिशय भाया॥
लेकर पुष्प सुगन्ध, गन्धवह बहता जाता
चंचल चतुर चकोर, पी कहाँ शोर मचाया॥
आया है ऋतुराज, मगन हो संसृति झूमी
ले मेघों का शंख, गगन ने स्वयं बजाया॥