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हेलै के हठ कैने छै ई जब / विजेता मुद्‍गलपुरी

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हेलै के हठ कैने छै ई जब सावन में गाँग भरल छै
केकरा-केकरा की समझै भोजब कुइयें में भाँग भरल छै

सबके अप्पन-अप्पन हस्ती कद से कुतुबमिनार लगै छै
कँटरेंगनी में भी गम-गम, गम-गम गमकै के स्वांग भरल छै

जर्जर बूढ़ा बनल तंत्र ई बैठल खों-खों खोखि रहल छै
लेकिन हुकुम चलावै ल खटिया के नीचे डाँग भरल छै

साँझे होय छै हथपकरी और बरके भोर तलाक परै छै
मन के ई उन्माद छिकै जे खेल-खेल में मांग भरल छै

सबके हँसते देख विजेता फेरो अष्ठावक्र हँसै छै
अंग भंग थोड़े सन जग में अक्कील के विक्लांग भरल छै