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हे तूं बालम के घर जाइये चंद्रमा / धनपत सिंह

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हे तूं बालम के घर जाइये चंद्रमा,
जाइये चंद्रमा और के चाहिये चंद्रमा

आज सखीयां तैं चाली पट, दो बात सुणैं नैं म्हारी डट
घूंघट तणना मुश्किल, बोहड़ीया बणना मुश्किल, जमणा मुश्किल
हे ईश्वर का सुकर मनाईये चंद्रमा

दिए पीट गुस्से से मुंडी, किसमत की खुलगी घुंडी
आच्छी भुंडी सहिए, मतना उल्टी कहिए, सब की दासी रहिए
म्हारा इतणा कहण पुगाईये चंद्रमा

घणी सुणकै होज्या थोड़ी, तूं जौहरी यो लाल करोड़ी
जोड़ी मिलगी सही, ऐसी देखी नहीं, कसर इब कौणसी रही
हंस खेल कूदिए खाईये चंद्रमा

ढंग ‘धनपत सिंह’ बदले हर सन, बनवारी लाल हो प्रसन्न
दर्शन मेली रहिए, ना अकेली रहिए, तूं सब की चेली रहिए
फेर नाम देश म्हं पाइये