भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हे सुण नीलम, पुखराज सेठ का बेटा / दयाचंद मायना
Kavita Kosh से
हे सुण नीलम, पुखराज सेठ का बेटा
साहुकारां का गरीबां तै ना भर्या करै सै पेटा...टेक
बोलण मै सीले लागैं, हो साहूकार पेट के ताते
काचे घा पै मिर्च गेरकै, ऊपर कर दे पट्टी पाते
धन आले माणस ना चाहते, भूख गरीबी मेटां...
सही कविता कर दैंगे हाम, छांटी करकै आठ गणा मैं
बड़े घरां के बोल इसे, जिसे कांटे हो सै नाग फणा मैं
वो चन्दन का रूप बण्साा मैं, तू एक जाल जलेटा...
दुनियां जाणै ठाड्यां आगै, हीणा की के पावर चलै
आपणी हद पै रुकज्या नीलम, मत आगे नै और चलै
माणस का के जोर चलै, जब कर्म पड़ै सै हेठा...
गुरु मुंशी नै गरीबां की, सब हाल हकीकत गा दी थी
दुनियां मैं प्रचार करो, या चेल्यां तै बतलादी थी
सारी बात बतादी थी, जिस रोज ‘दयाचन्द’ फेट्या...।