भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हैं सर-निगूँ जो ताना-ए-ख़ल्क-ए-ख़ुदा से हम / 'रशीद' रामपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हैं सर-निगूँ जो ताना-ए-ख़ल्क-ए-ख़ुदा से हम
क्या हो गए किसी की मोहब्बत में क्या से कम

अब तक कभी के मिट गए होते जफ़ा से हम
ज़िंदा हैं ऐ ‘रशीद’ किसी की दुआ से हम

याद आ गए जब अपने गले में वो दस्त-ए-नाज़
रोए लिपट लिपट के तिरे नक़्श-ए-पा से हम

बीमार-ए-दर्द-ए-हिज्र की पुर्सिश से फ़ाएदा
अच्छे हैं या बुरे हैं तुम्हारी बला से हम

पैदा हुए हैं फिर से ये समझेंगे ऐ ‘रशीद’
जीते बचे जो चारा-गरों की दवा से हम