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हैं सुनहरी बेड़ियाँ ये / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

भाई, यह क्या
आप फिर सुख की कथा कहने लगे
 
रोज़ सूरज ढल रहा -
यह आपको दिखता नहीं
दिन समय के पत्र पर
रितु-गीत अब लिखता नहीं
 
नदी बहकी
आप भी सँग धार के बहने लगे
 
फूल जो ये आ रहे बहकर
सुनो, असली नहीं हैं
पीढ़ियों से इस शहर में
खुशबुएँ नकली रहीं
 
ठग हुए सब
आप उनके साथ ही रहने लगे
 
यह कथा जो बाँचते हैं आप
सपनों की नहीं
आ रही जो दूर से आवाज़
अपनों की नहीं
 
हैं सुनहरी बेड़ियाँ ये -
आपको गहने लगे