है कहीं क्या देश मेरा काश! तुम बतला सको
भोगती पीढ़ी की पीड़ा काश! तुम बतला सको!
कोयले की संस्कृति में तुम तो हो इठला रहे
लूट रहा अनमोल हीरा, काश! तुम बतला सको।
भीतरी अलगाव को बाहर से भी दर्शाये जो
है फला ऐसा भी खीरा काश! तुम बतला सको!
कर रहा मनु-भाव की सवेदना को खोखला
है छुपा तुममें वो कीड़ा, काश ! तुम बतला सको।
बेच कर बेटी भी रोटी खा गया जनतंत्र में
फिर भी भूखा क्यों ‘फकीरा’ काश! तुम बतला सको!