भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है जन्म पाया इस धरा पर सिर उठा अभिमान से / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
है जन्म पाया इस धरा पर सिर उठा अभिमान से
भारत हमारा देश है यह बात कहिये शान से
जो जन्म देकर पालती है मात्र वह मिट्टी नहीं
बढ़ते सदा आगे रहें है मान इस के मान से
हो अर्चना नित भूमि की पूजें समझ कर देवता
अनुपम मिलेगी कीर्ति जग में मात्र इतने ज्ञान से
हो यत्न यदि सामर्थ्य भर पूरी करे निज कामना
संकल्प तो पूरे कभी होते नहीं अरमान से
हो चाह यदि सम्मान की सम्मान करना सीखिये
हर आदमी है चाहता जीना जगत में शान से
इस स्वार्थरत संसार में जीना नहीं आसान है
मति धैर्य केवल माँगिये यदि माँगिये भगवान से
है खो दिया यदि मान तो क्या अर्थ जीवन का रहा
कुछ काम हो ऐसा जियें जब तक रहें सम्मान से