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है निहायत सख़्त शान-ए-इम्तिहान-ए-कू-ए-दोस्त / 'रशीद' रामपुरी
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है निहायत सख़्त शान-ए-इम्तिहान-ए-कू-ए-दोस्त
ज़िंदगी से हाथ धो लें साकिनान-ए-कू-ए-दोस्त
जब नहीं पाते पता ना-वाक़िफ़ान-ए-कू-ए-दोस्त
दर्द उठ उठ के बताता है निशान-ए-कू-ए-दोस्त
तंग करते हैं हमें क्यूँ पास-बान-ए-कू-ए-दोस्त
और हैं दो-चार दिन हम मेहमान-ए-कू-ए-दोस्त
ना-तवाँ ये और मंज़िल इश्क़ की दुश्वार-तर
चलते चलते थक न जाएँ राह-रवान-ए-कू-ए-दोस्त
आरज़ू-ए-वस्ल है अब और न फ़ुर्क़त का अलम
शुक्र है आराम से हैं ख़ुफ़्तगान-ए-कू-ए-दोस्त
कौन सी जा है असीरान-ए-मोहब्बत के लिए
किस लिए जाएँ कहीं वाबस्तगान-ए-कू-ए-दोस्त
ऐ ‘रशीद’ उल्फ़त में जज़्ब-ए-दिल सलामत चाहिए
ढूँढ ही लेंगे किसी सूरत निशान-ए-कू-ए-दोस्त