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है मश्क़े-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी / हसरत मोहानी

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है मश्क़े-सुख़न<ref>काव्याभ्यास </ref>जारी, चक्की की मशक़्क़त<ref> चक्की पीसने का श्रम(हसरत मोहानी ने 771 से ज़्यादा ग़ज़लें कहीं जिन में से आधी से अधिक उन्होंने भारत में अँग्रेज़ों के राज के दौरान विभिन्न जेलों में कहीं) </ref> भी
इक तरफ़ा<ref>अद्वित्तीय </ref>तमाशा है हसरत की तबीयत भी
 
जो चाहो सज़ा दे लो तुम और भी खुल-खेलो
पर हम से क़सम ले लो की हो जो शिकायत भी

ख़ुद इश्क़ की गुस्ताख़ी सब तुझको सिखा देगी
अय हुस्न-ए-हया परवर शोख़ी भी शरारत भी

उश्शाक़<ref>आशिक़ों </ref> के दिल नाज़ुक, उस शोख़ की ख़ू<ref>आदत</ref> नाज़ुक
नाज़ुक इसी निस्बत<ref>इसी प्रकार
</ref> से है कारे-महब्बत<ref> प्रेम का काम</ref> भी

अय शौक़ की बेबाकी वोह क्या तेरी ख़्वाहिश थी
जिसपर उन्हें ग़ुस्सा है, इनकार भी ,हैरत भी

शब्दार्थ
<references/>