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होली गीत / यतींद्रनाथ राही

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किंशुक दहके
पाँखी चहके
उड़ते रंग-गुलाल
कचनारों ने सजा दिया है
वासन्ती का थाल
झुकी डालियाँ
वन्दनवारें
मौर आम के झूले
काँटों उभरी देह
फूल
भीतर बगिया के फूले
उमड़े घन आनन्द
सिन्धु में
आया नया उछाल।
होली का त्योहार
मिलन के
आलिंगन मन-भाए
प्रीति-प्रतीति
रीति के नाते
अपने हुए पराए
नाचे-झूमे
एक साथ फिर
कागा और मराल।
मठाधीश
योगी और भोगी
रँगे सभी गहरे
बड़े बड़ों के
धुले अचानक
असली-नकली चहरे
राजनीति भाभी के आँगन
ऐसा मचा धमाल?