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हो अच्छा सुथरा खानदान वा इज्जत राखै तेरी / विरेन सांवङिया
Kavita Kosh से
हो अच्छा सुथरा खानदान वा इज्जत राखै तेरी।
इसी ढूंढ-ढांढ कै किते तै बहू ल्यादे बाबू मेरी॥
माड़े घर की हो बेशक वा हो रै सादे ढंग मै।
नैन-नक्श की हो सुथरी चाहे हो ना गौरे रंग मै।
एक आधी बै वा नू चालै जणू लरजे खावै बेरी॥
माँ की सेवा खूब करै वा मेरे बाबू तेरा सत्कार करै।
सबनै बोलै इज्जत तै और इज्जत उसकी परिवार करै।
नहा धौ कै करै हरि भजन वा उठके रोज सबेरी॥
चूल्हे चौके का जाणै सब करदे खड़ा बिटौड़ा।
मेरे सेथी करै लामणी ठा के फेर दोजोड़ा।
रोटी ले वा आवै खेत मै ना करै मासा भी देरी॥
थके हारे हम सौवैं छात पै करै टिमटिम-2 तारे।
सांवड़िया कहै करियो थ्यावस थम जितने मलंग कुँवारे।
इस मिठी मिठी ठारी मै इब ना कटती रात अंधेरी॥