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हो नहीं यदि आस्था ये सुमन बन काँटें छलेंगे / रंजना वर्मा

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हो नहीं यदि आस्थायें बन सुमन काँटे छलेंगे।
नाव कागज की सदृश विश्वास के अंकुश गलेंगे॥

देश के भावी सपूतों के कदम मासूम हैं पर
ये कमल के फूल जैसी राह पर कैसे चलेंगे॥

चाहिये जीना इन्हें विश्वास का लेकर सहारा
कुछ अजाने मोड़ भी तो राह पर इनको मिलेंगे॥

मुस्कुराएँगे विपद की आँधियों में ये हमेशा
मन उपेक्षित हो अगर तो नयन से आँसू ढलेंगे॥

जिंदगी को रोशनी जब प्यार से आवाज देगी
विवशता से हाथ ये भी तो कभी अपने मिलेंगे॥

जब समस्याएँ निगल जायें अमर अरमान उर के
दूध के बदले सभी तब ये जहर पी कर पलेंगे॥

हो अगर संकल्प साहस साथ में अपने हमेशा
हर तरफ उम्मीद खुशियों के कई दीपक जलेंगे॥