भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ }} Category:गज़ल दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने...)
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
 
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
 +
|संग्रह=
 
}}
 
}}
[[Category:गज़ल]]
+
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
 
  
 
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला <br>
 
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला <br>

00:59, 28 जनवरी 2008 का अवतरण


दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला
वही अन्दाज़ है ज़ालिम का ज़मानेवाला

अब इसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मेरा
सख़्त नदीम है मुझे दाम में लानेवाला

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे इस से
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जानेवाला

तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आनेवाला

मुंतज़िर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं
कौन आयेगा यहाँ कौन है आनेवाला

मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बतानेवाला

क्या ख़बर थी जो मेरी जान में घुला है इतना
है वही मुझ को सर-ए-दार भी लाने वाला

तुम तक़ल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो "फ़राज़"
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलानेवाला