भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यह भी दिन, यह भी धूप / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२ |संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खि…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:46, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण
एक चेहरा
जो बहुत दिनों बाद
अचानक दिखा हो!
एक छाया
जो चुपचाप
टीलों और पहाड़ियों पर
खो गई हो!
एक शाम
जिसमें कुछ विदा की स्मृतियां हैं
हटाती ही न हो
ख़्यालों से
चलो! बहुत हुई अतीत की याद
डूबेगा उसी सुदूर में
यह भी दिन
यह भी धूप!