भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भोपालःशोकगीत 1984 - इस शहर को छोड़कर / राजेश जोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=राजेश जोशी | |रचनाकार=राजेश जोशी | ||
+ | |संग्रह=मिट्टी का चेहरा / राजेश जोशी | ||
}} | }} | ||
− | |||
− | |||
जो छोड़कर गए थे<br> | जो छोड़कर गए थे<br> | ||
सब लौट आये, सब लौट आयेंगे एक दिन।<br> | सब लौट आये, सब लौट आयेंगे एक दिन।<br> |
23:40, 3 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण
जो छोड़कर गए थे
सब लौट आये, सब लौट आयेंगे एक दिन।
इस शहर को छोड़कर
अब कभी नहीं जा पायेंगे हम.
जिस मिट्टी के नीचे दबी हों
अपनों की हड्डियाँ
कोई छोड़कर जा भी कैसे सकता है
वह जगह !
इससे ज़्यादा कोई बिगाड़ भी क्या सकता है
किसी शहर का !
अब मृत्यु से कभी नहीं डर पायेंगे हम।
अब चाहकर भी कभी इस शहर से
नफ़रत नहीं कर पायेंगे हम।