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"ज़िन्दगी : आज के परिवेश में / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
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कंधे पर
सूर्य को बिठाए
डूबता-असहाय क्षितिज !
अहिल्या चट्टानों पर
पागल अजगर-सा
सिर पटकता
अथाह समुद्र !
तट पर खड़ई
मायूस सुबह
डैनों में
आकाश बाँध कर भागती-
चील को निहार रही है....!