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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 26" के अवतरणों में अंतर

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'''पद 251 से 260 तक'''
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(251)
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श्री राम! रावरो सुभाउ, गुन सील महिमा प्रभाउ,
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जान्यो हर, हनुमान, लखन, भरत।
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जिन्हके हिये-सुथरू राम-प्रेम-सुरतरू,
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लसत सरस सुख फूलत फरत।।
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आप माने स्वामी कै सखा सुभाइ भाइ, 
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पति, ते सनेेह-सावधान रहत डरत।
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साहिब-सेवक-रीति, प्रीति-परिमिति,
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नीति, नेमको निबाह एक टेक न टरत।।
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सुक-सनकादि, प्रहलाद-नारदादि कहैं,
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रामकी  भगति बड़ी बिरति-निरत।
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जाने बिनु भगति न, जानिबो तिहारे हाथ,
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समुझि सयाने नाथ! पगनि परत। ।
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छ-मत बिमत, न पुरान मत, एक मत,
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नेति-नेति-नेति नित निगम करत।
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औरनिकी कहा चली? एकै बात भलै भली,
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राम-नाम लिये तुलसी हू से तरत।।
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(253)
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श्री राम ! राखिये सरन, राखि आये सब दिन।
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बिदित त्रिलोक तिहुँ काल न दयालु दूजो,
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आरत-प्रनत -पाल को है प्रभु बिन।।
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लाले पाले, पोषे तोषे आलसी-अभागी -अघी,
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नाथ! पै अनाथनिसों भये न उरिन।
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स्वामी समरथ ऐसो, हौं होति हिये  घनी घिन।।
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खीझि-रीझि , बिहँसि-अनख, क्यों हूँ एक बार।
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‘तुलसी तू मेरो’ , बलि, कहियत किन?
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जाहिं सूल निरमूल, होहिं सुख अनुकूल,
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महाराज राम! रावरी सौं, तेहि छिन।।
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(254)
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श्री राम! रावरो नाम मेरो मातु-पितु है।
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सुजन-सनेही, गुरू-साहिब, सखा-सुहृदय,
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राम-नाम प्रेम -पन अबिचल बितु हैं। ।
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सतकोटि चरित अपार दधिनिधि मथि,
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लियो काढ़ि वामदेव नाम-घृतु है।
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नामको भरोसो-बल चारिहू फलको फल,
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सुमिरिये छाड़ि छल, भलो कृतु है। ।
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स्वारथ-साधक, परमारथ-दायक नाम,
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राम-नाम सारिखेा न और हितु है,
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तुलसी सुभाव कही, साँचिये परैगी सही,
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सीतानाथ-नाम नित चितहूको चितु है।।
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20:28, 29 अप्रैल 2011 का अवतरण