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"कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 35" के अवतरणों में अंतर

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'''भाग-7 उत्तर काण्ड प्रारंभ'''
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राम की कृपालुता  
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(1)
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बालि-सो बीरू बिदारि सुकंठु, थप्यो, हरषे सुर बाजने बाजे।
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पल में दल्यो दासरथीं दसकंधरू, लंक बिभीषनु राज बिराजे।।
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  राम सुभाउ सुनें ‘तुलसी’ हुलसै अलसी हम-से गलगाजे।
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कायर क्रूर कपूतनकी हद, तेउ गरीबनेवाज नेवाजे।1।
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(2)
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बेद पढ़ैं बिधि, संभुसभीत पुजावन रावनसों नितु आवैं ।
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दानव देव दयावने दीन दुखी दिन दूरिहि तेें  सिरू नावैं।।
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ऐसेउ भाग भगे दसभाल तेें जो प्रभुता कबि-कोबिद गावैं।
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रामके बाम भएँ तेहि बामहि बाम सबै सुख संपति लावैं।2।
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(3)
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बेद बिरूद्ध मही, मुनि साधु ससोक किए सुरलोकु उजारो।
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और कहा कहौं , तीय हरी, तबहूँ करूनाकर कोपु न धारो।।
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सेवक-छोह तें छाड़ी छमा , तुलसी लख्यो राम! सुभाउ तिहारो।  
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तौलौं न दापु दल्यौ दसकंधर, जौलौं बिभीषन लातु न मारो।3।
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08:57, 6 मई 2011 का अवतरण