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लोकरीति -लायक न , लंगर लबारू है।
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स्वारथु अगमु परमारथकी कहा चली,
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पेटकीं कठिन जगु जीवको जवारू है।।
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चाकरी न आकरी , न खेती, न बनिज-भीख,
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जानत न कूर कछु किसब कबारू है।
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तुलसी की बाजी राखी रामहींके नाम , नतु ,
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भेंट पितरन को न मूड़हू में बारू है।।
  
 
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अपत -उतार , अपकारको अगारू ,
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जग, जाकी  छाँह छुएँ सहमत ब्याध-बाघको।
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पातक-पुहुमि पालिबेको सहसाननु सो,
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काननु कपटको , पयोधि  अपराधको।
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तुलसी-से बामको  भो दाहिनो  दयानिधानु,
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सुनत ललित-ललामु कियो लखानिको,
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बड़ो क्रूर कायर कपूत-कौड़ी आधको।।
  
 
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10:14, 8 मई 2011 के समय का अवतरण


नामविश्वास-2

(67)

ऊँचो मनु, ऊँचो रूचि, भागु नीचो निपट है।
लोकरीति -लायक न , लंगर लबारू है।

 स्वारथु अगमु परमारथकी कहा चली,
पेटकीं कठिन जगु जीवको जवारू है।।

 चाकरी न आकरी , न खेती, न बनिज-भीख,
 जानत न कूर कछु किसब कबारू है।

तुलसी की बाजी राखी रामहींके नाम , नतु ,
 भेंट पितरन को न मूड़हू में बारू है।।

(68)

अपत -उतार , अपकारको अगारू ,
 जग, जाकी छाँह छुएँ सहमत ब्याध-बाघको।

पातक-पुहुमि पालिबेको सहसाननु सो,
काननु कपटको , पयोधि अपराधको।

तुलसी-से बामको भो दाहिनो दयानिधानु,
सुनत ललित-ललामु कियो लखानिको,
बड़ो क्रूर कायर कपूत-कौड़ी आधको।।