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"बीज / अनिल विभाकर" के अवतरणों में अंतर

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बस थोड़ी सी मिट्टी चाहिए  
 
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थोड़ी सी मिट्टी मिली नहीं कि उग जाते हैं बीज  
 
थोड़ी सी मिट्टी मिली नहीं कि उग जाते हैं बीज  
 
 
जड़ें कितनी गहरी होंगी
 
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कोई चिंता नहीं  
 
कोई चिंता नहीं  
 
 
उगने का उत्साह उनमें कभी कम नहीं होता  
 
उगने का उत्साह उनमें कभी कम नहीं होता  
 
 
पता नहीं क्यों खत्म हो जाता है  
 
पता नहीं क्यों खत्म हो जाता है  
 
 
आदमी का उत्साह  
 
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जब भी खत्म होने लगे उत्साह  
 
जब भी खत्म होने लगे उत्साह  
 
 
बीज हमेशा देंगे आपका साथ  
 
बीज हमेशा देंगे आपका साथ  
 
 
जब भी घटने लगता है उत्साह  
 
जब भी घटने लगता है उत्साह  
 
 
हमें हमेशा याद आते हैं बीज  
 
हमें हमेशा याद आते हैं बीज  
 
 
और घने पेड़ की तरह हरा हो जाता हूं मैं।</poem>
 
और घने पेड़ की तरह हरा हो जाता हूं मैं।</poem>

19:45, 24 मई 2011 के समय का अवतरण


बस थोड़ी सी मिट्टी चाहिए
थोड़ी सी मिट्टी मिली नहीं कि उग जाते हैं बीज
जड़ें कितनी गहरी होंगी
कोई चिंता नहीं
उगने का उत्साह उनमें कभी कम नहीं होता
पता नहीं क्यों खत्म हो जाता है
आदमी का उत्साह

जब भी खत्म होने लगे उत्साह
बीज हमेशा देंगे आपका साथ
जब भी घटने लगता है उत्साह
हमें हमेशा याद आते हैं बीज
और घने पेड़ की तरह हरा हो जाता हूं मैं।