भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
बस थोड़ी सी मिट्टी चाहिए
थोड़ी सी मिट्टी मिली नहीं कि उग जाते हैं बीज
जड़ें कितनी गहरी होंगी
कोई चिंता नहीं
उगने का उत्साह उनमें कभी कम नहीं होता
पता नहीं क्यों खत्म हो जाता है
आदमी का उत्साह
जब भी खत्म होने लगे उत्साह
बीज हमेशा देंगे आपका साथ
जब भी घटने लगता है उत्साह
हमें हमेशा याद आते हैं बीज
और घने पेड़ की तरह हरा हो जाता हूं मैं।</poem>