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अनिल जी, मैंने लिखा है <b>"...तो इस मुगालता से "प्रूफ़रीड किया है" लिखता कि मैं ज्ञानपीठ वालों से ज़्यादा अच्छा प्रूफ़रीडर हूँ। वो ऐसे गधे हैं जिनके बारे में बारे में तफ़सील में जानने के लिए [[सदस्य:Hemendrakumarrai|यहाँ पर]] जाइए।"</b> अब आप, सारी बात भूल कर व्याकरण पर आइए। सर्वनाम संज्ञा को न दोहराने के लिए इस्तेमाल होता है। दूसरे फ़िकरे में जो '''वो''' किसके लिए इस्तेमाल किया गया है? '''ज्ञानपीठ वालों''' के लिए। जो प्रूफ़रीडर चंद्रबिंदु का इस्तेमाल करना नहीं जानता, उसे गधा कहना में कोई उज्र नहीं होना चाहिए। आपको जो ग़लतफ़हमी हो रही है वो "यहाँ पर" वाले लिंक की वजह से है। ये हेमेंद्र जी के परिचय वाले पन्ने ले पर जाता है, जिस पर आपने हेमेंद्र जी को बिंदु का इस्तेमाल बताया है और प्रकाशकों के प्रूफ़रीडरों को कोसा है, और मैंने उनको(प्रूफरीडरों को) जो गधे की संज्ञा दी है, उसे मुनासिब ठहराने के लिए आपकी इस बात को दोहराने करने की बजाए, मैंने, जहाँ आपने ये बात की है, उस पन्ने का लिंक दे डाला। ये पन्ना हेमेंद्र जी का सदस्य वार्ता वाला पन्ना होता तो शायद आपको ये ग़लतफहमी नहीं होती, पर ये बात आपने उनके परिचय वाले पन्ने पर ही लिखी थी, जिसके सबब आपको ये लगा की मैं हेमेंद्र जी बेइज़्ज़्ती कर रहा हूँ। दरअसल, मुझे आपके इसी जवाब से पता चला था कि जो छपा हुआ है, वो भी ग़लत हो सकता है। यहीं पर मुझे ये जानकारी मिली थी। और इस पन्ने का ऐसा ही लिंक मैंने [[सदस्य वार्ता:Pratishtha#26 फ़रवरी को जो आपने अज्ञेय की कविताएँ बदली थी।|प्रतिष्ठा जी के सदस्य वार्ता वाले पन्ने]] पर भी दिया है। मेरी चिट्ठी में हेमेंद्र जी का न तो सीधे न परोक्ष रूप से कोई ज़िक्र है। [[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] ०४:३८, १४ अप्रैल २००८ (UTC) | अनिल जी, मैंने लिखा है <b>"...तो इस मुगालता से "प्रूफ़रीड किया है" लिखता कि मैं ज्ञानपीठ वालों से ज़्यादा अच्छा प्रूफ़रीडर हूँ। वो ऐसे गधे हैं जिनके बारे में बारे में तफ़सील में जानने के लिए [[सदस्य:Hemendrakumarrai|यहाँ पर]] जाइए।"</b> अब आप, सारी बात भूल कर व्याकरण पर आइए। सर्वनाम संज्ञा को न दोहराने के लिए इस्तेमाल होता है। दूसरे फ़िकरे में जो '''वो''' किसके लिए इस्तेमाल किया गया है? '''ज्ञानपीठ वालों''' के लिए। जो प्रूफ़रीडर चंद्रबिंदु का इस्तेमाल करना नहीं जानता, उसे गधा कहना में कोई उज्र नहीं होना चाहिए। आपको जो ग़लतफ़हमी हो रही है वो "यहाँ पर" वाले लिंक की वजह से है। ये हेमेंद्र जी के परिचय वाले पन्ने ले पर जाता है, जिस पर आपने हेमेंद्र जी को बिंदु का इस्तेमाल बताया है और प्रकाशकों के प्रूफ़रीडरों को कोसा है, और मैंने उनको(प्रूफरीडरों को) जो गधे की संज्ञा दी है, उसे मुनासिब ठहराने के लिए आपकी इस बात को दोहराने करने की बजाए, मैंने, जहाँ आपने ये बात की है, उस पन्ने का लिंक दे डाला। ये पन्ना हेमेंद्र जी का सदस्य वार्ता वाला पन्ना होता तो शायद आपको ये ग़लतफहमी नहीं होती, पर ये बात आपने उनके परिचय वाले पन्ने पर ही लिखी थी, जिसके सबब आपको ये लगा की मैं हेमेंद्र जी बेइज़्ज़्ती कर रहा हूँ। दरअसल, मुझे आपके इसी जवाब से पता चला था कि जो छपा हुआ है, वो भी ग़लत हो सकता है। यहीं पर मुझे ये जानकारी मिली थी। और इस पन्ने का ऐसा ही लिंक मैंने [[सदस्य वार्ता:Pratishtha#26 फ़रवरी को जो आपने अज्ञेय की कविताएँ बदली थी।|प्रतिष्ठा जी के सदस्य वार्ता वाले पन्ने]] पर भी दिया है। मेरी चिट्ठी में हेमेंद्र जी का न तो सीधे न परोक्ष रूप से कोई ज़िक्र है। [[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] ०४:३८, १४ अप्रैल २००८ (UTC) |
01:04, 18 अप्रैल 2008 का अवतरण
विषय सूची
धन्यवाद
धन्यवाद अनिल जी, आपने सुमित जी के लिये मेरे लिखे संदेशों में वर्तनी की ग़लतियाँ ठीक कर दी। मेरा वर्तनी ज्ञान बहुत ही बुरा है; पर धीरे-धीरे सीख जाऊंगा।
सादर
--Lalit Kumar १९:३४, १७ अप्रैल २००८ (UTC)
मेरी सफ़ाई
अनिल जी, मैंने लिखा है "...तो इस मुगालता से "प्रूफ़रीड किया है" लिखता कि मैं ज्ञानपीठ वालों से ज़्यादा अच्छा प्रूफ़रीडर हूँ। वो ऐसे गधे हैं जिनके बारे में बारे में तफ़सील में जानने के लिए यहाँ पर जाइए।" अब आप, सारी बात भूल कर व्याकरण पर आइए। सर्वनाम संज्ञा को न दोहराने के लिए इस्तेमाल होता है। दूसरे फ़िकरे में जो वो किसके लिए इस्तेमाल किया गया है? ज्ञानपीठ वालों के लिए। जो प्रूफ़रीडर चंद्रबिंदु का इस्तेमाल करना नहीं जानता, उसे गधा कहना में कोई उज्र नहीं होना चाहिए। आपको जो ग़लतफ़हमी हो रही है वो "यहाँ पर" वाले लिंक की वजह से है। ये हेमेंद्र जी के परिचय वाले पन्ने ले पर जाता है, जिस पर आपने हेमेंद्र जी को बिंदु का इस्तेमाल बताया है और प्रकाशकों के प्रूफ़रीडरों को कोसा है, और मैंने उनको(प्रूफरीडरों को) जो गधे की संज्ञा दी है, उसे मुनासिब ठहराने के लिए आपकी इस बात को दोहराने करने की बजाए, मैंने, जहाँ आपने ये बात की है, उस पन्ने का लिंक दे डाला। ये पन्ना हेमेंद्र जी का सदस्य वार्ता वाला पन्ना होता तो शायद आपको ये ग़लतफहमी नहीं होती, पर ये बात आपने उनके परिचय वाले पन्ने पर ही लिखी थी, जिसके सबब आपको ये लगा की मैं हेमेंद्र जी बेइज़्ज़्ती कर रहा हूँ। दरअसल, मुझे आपके इसी जवाब से पता चला था कि जो छपा हुआ है, वो भी ग़लत हो सकता है। यहीं पर मुझे ये जानकारी मिली थी। और इस पन्ने का ऐसा ही लिंक मैंने प्रतिष्ठा जी के सदस्य वार्ता वाले पन्ने पर भी दिया है। मेरी चिट्ठी में हेमेंद्र जी का न तो सीधे न परोक्ष रूप से कोई ज़िक्र है। Sumitkumar kataria ०४:३८, १४ अप्रैल २००८ (UTC)
और हाँ, आपको ये शक़ भी हो सकता है कि मैंने अपनी बात बदल दी है। इसके लिए आप हाल में हुए बदलाव में देख लीजिए। मैंने ललित कुमार के पन्ने पर आख़िरी बदलाव 13 अप्रैल को १३:२८ को किया (इस पन्ने के उस दिन के बाक़ी बदलावों के समय के लिए नीला तिकोना बटन दबाइए), आपने १८:३८ को मुझे संदेश भेजा, इसके बाद ललित कुमार के पन्ने में मेरे अकाउंट द्वारा कोई बदलाव नहीं है, आप मुझे जवाब भेजेंगे, उसके बाद ही मैं ललित जी से आगे बात करूँगा, वर्ना आपको लगेगा की मैंने अपनी बात बदल दी, क्योंकि तब मुझे ऐसा करने का मौक़ा मिल जाता है।
Sumitkumar kataria ०६:२९, १४ अप्रैल २००८ (UTC)
KKRachna टेम्प्लेट में एक और बदलाव हुआ है। इसके बारे में चौपाल में पढे़। --Lalit Kumar ११:४७, २८ जून २००७ (UTC)
कविता संग्रह का लिंक बनाना
आदरणीय अनिल जी,
KKRachna टेम्प्लेट का प्रयोग करते समय जब हम संग्रह का लिंक बनाते हैं तो वह ऐसे बनना चाहिये:
संग्रह का नाम / कवि का नाम
उदाहरण के लिये:
|संग्रह=निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ
लिखने की बजाये इसे कवि के नाम के साथ ऐसे लिखा जाना चाहिये:
|संग्रह=निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ / कुमार विकल
तभी लिंक ठीक से बनेगा
सादर
--Lalit Kumar ०९:१३, १९ सितम्बर २००७ (UTC)
संपादन के संबंध में
आदरणीय अनिल जी,
अभी कुछ दिनों पूर्व आपने मुक्तिबोध के कविता संग्रह "चाँद का मुँह टेढ़ा है" में संपादन करते हुए 'चाँद' पर से
चंद्रबिंदु हटा कर चांद कर दिया है। राजकमल द्वारा प्रकाशित संग्रह में इसे "चाँद का मुँह टेढ़ा है" ही लिखा गया है। मैं
प्रायः कविता संग्रह में प्रकाशित पाठ के अनुरूप ही कविताएँ टंकित कर काव्यकोश में डालता हूँ।
वैसे सही-ग़लत क्या है आप मुझसे ज़्यादा जानते होंगे, क्योंकि मेरा हिन्दी के व्याकरण का अध्ययन नहीं के बराबर
है। काव्यकोश के वर्तनी संबंधी दिशा निर्देशों में भी चाँद पर चंद्रबिंदु ही लगाने का उल्लेख है। मुझे भी लगता है कि
यदि चाँद से ही चंद्रबिंदु छीन लिया जाएगा तो वह बेचारा कहाँ जाएगा। उचित मार्ग दर्शन की अपेक्षा है।--Hemendrakumarrai ११:५५, १८ जनवरी २००८ (UTC)
लाख दुश्मनों बाली दुनिया के बावजूद / जयप्रकाश मानस क्या इसके हिज्जे ग़लत नहीं हैं? और हाँ, बहुत दिन पहले आपको ई-मेल भेजा था, शायद पढ़ा नहीं। --Sumitkumar kataria १६:३१, ३ मार्च २००८ (UTC)