भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सीतल-समीर मंद हरत मरंद-बुंद / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=द्विज | |रचनाकार=द्विज | ||
− | }} | + | }}{{KKAnthologyBasant}} |
{{KKPageNavigation | {{KKPageNavigation | ||
|पीछे=लटपटी पाग सिर साजत उनींदे अंग / शृंगार-लतिका / द्विज | |पीछे=लटपटी पाग सिर साजत उनींदे अंग / शृंगार-लतिका / द्विज |
09:45, 28 जून 2011 का अवतरण
<< पिछला पृष्ठ | पृष्ठ सारणी | अगला पृष्ठ |
रूप घनाक्षरी
(शांतिमय वन-वर्णन)
सीतल-समीर मंद हरत मरंद-बुंद, परिमल लीन्हैं अलि-कुल छबि छहरत ।
कामबन, नंदन की उपमा न देत बनैं, देखि कैं बिभव जाकौ सुर-तरु हहरत ॥
त्यागि भय-भाव चहूँ घूँमत अनंद भरे, बिपिन-बिहारिन पैं सुख-साज लहरत ।
कोकिल, चकोर, मोर करत चहूँघाँ सोर, केसरी-किसोर बन चारौं ओर बिहरत ॥१०॥