भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सबै फूल फूले, फबे चारु सोहैं / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }} {{KKPageNavigation |पीछे=हौंन लागे सोर चहुँ ओर प्रति …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
07:54, 29 जून 2011 का अवतरण
भुजंगप्रयात
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)
सबै फूल फूले, फबे चारु सोहैं । भँवैं भौंर भूले, भले चित्त-मोहैं ॥
बहै मंद-ही, मंद-ही, बायु रूरे । सुबासैं, सबै भाँति-सौं सोभ-पूरे ॥१७॥