भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अति प्रसन्न गदगद गिरा / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }} {{KKPageNavigation |पीछे=चिंता और उछाह मैं / शृंगार-ल…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
06:21, 6 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
दोहा
(कवि प्रसन्नता-वर्णन)
अति प्रसन्न गदगद गिरा, मुख सौं कढ़त न बात ।
बार-बार बिनती करी, जोरि सुकर-जलजात ॥५३॥