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"देहगीत 1 / एम० के० मधु" के अवतरणों में अंतर

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देह-
 
देह-
 
अनबोलते शब्द
 
अनबोलते शब्द

22:01, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


देह-
अनबोलते शब्द
देह-
अनसुने स्वर
देह-
झंकृत वीणा का
मौन राग
सांसों की गुफा में
सुलगती आग
पेड़ों की छांव में
गहरी नींद
समुद्र की गोद में
डोलती लहर
पहाड़ की बांह में
लरजते निर्झर

देह-
एक लंबा सफर
कभी शाम कभी दोपहर
पीती कुछ अमृत
कुछ जहर
देह-
गुलमोहर और अमलतास
देह-
स्पर्श का सुखद अहसास
मेरा उसका
निश्छल विश्वास

देह-
एक बड़ा सेतुबंध
बिन लड़े
कभी जीतती बड़ी जंग
और लड़कर भी
कभी हारती
जीवन का द्वन्द्व
देहों की दुनिया में
देह छोड़ती
एक बड़ा प्रश्न।