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मुझे उस पुल पर चढ़ने को मजबूर करता है | मुझे उस पुल पर चढ़ने को मजबूर करता है | ||
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सूराख बनाता रहता | सूराख बनाता रहता | ||
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चुरा कर लाता | चुरा कर लाता | ||
निज की मरुभूमि पर | निज की मरुभूमि पर | ||
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दौड़ लगाता रहता | दौड़ लगाता रहता | ||
तय करता रहता | तय करता रहता | ||
एक अन्तहीन दूरी | एक अन्तहीन दूरी | ||
− | शब्द से निःशब्द | + | शब्द से निःशब्द तक । |
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22:08, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
इन दिनों मेरी सारी कविताएँ
तुम्हारे इर्द गिर्द घूमती हैं
इन दिनों धूप का एक गोला
बार-बार तुम्हारी पलकों की छाँव से टकरा कर
मेरी खिड़की पर आ गिरता है
इन दिनों हर शाम
बरसात के मौसम में
बादलों का समूह
तुम्हारी छत और मेरी छत के बीच
पुल बनाता है
इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं है
पर तुम्हारी गंध का निःशब्द अहसास
मुझे उस पुल पर चढ़ने को मजबूर करता है
काश! हॉलीवुड का स्पाइडर-मैन होता
या सुपर-मैन
तुम्हारे कँगूरे से लटकता झूलता रहता
तुम्हारे निज के मौसम में
सूराख बनाता रहता
कुछ पानी, कुछ आग
चुरा कर लाता
निज की मरुभूमि पर
पेड़ों की पाँत लगाते
दौड़ लगाता रहता
तय करता रहता
एक अन्तहीन दूरी
शब्द से निःशब्द तक ।