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"जो सच कहें तो ये कुल सल्तनत हमारी है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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कभी तो सेज पे दुल्हन के, कभी मरघट में | कभी तो सेज पे दुल्हन के, कभी मरघट में | ||
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02:04, 10 जुलाई 2011 का अवतरण
जो सच कहें तो ये कुल सल्तनत हमारी है
पड़े हैं पाँवों में तेरे, ये ख़ाकसारी है
सुबह जो एक भी मिलती है ज़िन्दगी की हमें
तमाम उम्र की इस बंदगी से भारी है
वो एक बात जो होँठों पे आके ठहरी है
वो एक बात तेरी हर अदा से प्यारी है
पता नहीं कि घड़ी प्यार की कब आयेगी
अभी तो हमको रुलाने का खेल ज़ारी है
कभी तो सेज पे दुल्हन के, कभी मरघट में
गुलाब! तुमने भी क्या ज़िन्दगी गुज़ारी है!