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"सुनते नहीं हैं पाँव की आहट कहीं से हम / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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सपना चुराके लाये थे कोई कहीं से हम | सपना चुराके लाये थे कोई कहीं से हम | ||
01:36, 23 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
सुनते नहीं हैं पाँव की आहट कहीं से हम
बाज़ आये उनके प्यार की ऐसी 'नहीं' से हम
अबकी न ज़िन्दगी को परखने में होगी भूल
फिर से शुरू करेंगे कहानी वहीं से हम
कहते हैं जिसको प्यार, ख़ुमारी थी नींद की
सपना चुराके लाये थे कोई कहीं से हम
जाओ जहाँ भी सुख से रहो, हमको भूलकर
धारा है तेज, लौट रहे हैं यहीं से हम
इतने चुभे हैं प्यार में काँटें गुलाब को
उठती है हूक जब भी झुकाते कहीं से हम