भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
चैन था मर भी जाते कभी
यह तो मर-मर के मरके जीना हुआ
हमको तलछट मिला अंत में
वह तो बस मुस्कुरा भर दिए
खून ख़ून अपना पसीना हुआ
अब तो पतझड़ है शायद! गुलाब
ठाठ पत्तों का झीना हुआ
<poem>
2,913
edits