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"तुमको निहरता हूँ सुबह से ऋतम्बरा / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

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तुमको निहरता हूँ सुबह से ऋतम्बरा
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अब शाम हो रही है मगर मन नहीं भरा  
 
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ख़रगोश बन के दौड़ रहे हैं तमाम ख़्वाब
 
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फिरता है चाँदनी में कोई सच डरा—डरा  
 
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पौधे झुलस गए हैं मगर एक बात है
 
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मेरी नज़र में अब भी चमन है हरा—भरा  
 
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लम्बी सुरंग-से है तेरी ज़िन्दगी तो बोल
 
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मैं जिस जगह खड़ा हूँ वहाँ है कोई सिरा  
 
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माथे पे हाथ रख के बहुत सोचते हो तुम
 
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गंगा क़सम बताओ हमें कया है माजरा
 
गंगा क़सम बताओ हमें कया है माजरा
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19:12, 30 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

तुमको निहारता हूँ सुबह से ऋतम्बरा
अब शाम हो रही है मगर मन नहीं भरा

ख़रगोश बन के दौड़ रहे हैं तमाम ख़्वाब
फिरता है चाँदनी में कोई सच डरा—डरा

पौधे झुलस गए हैं मगर एक बात है
मेरी नज़र में अब भी चमन है हरा—भरा

लम्बी सुरंग-से है तेरी ज़िन्दगी तो बोल
मैं जिस जगह खड़ा हूँ वहाँ है कोई सिरा

माथे पे हाथ रख के बहुत सोचते हो तुम
गंगा क़सम बताओ हमें कया है माजरा