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"शब्द जो साथ नहीं चलते / विमलेश त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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ध्ुँध्लाई आँखों से
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और हमारी खुशी में आ जाते हैं हँसते
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और हमारी ख़ुशी में आ जाते हैं हँसते
जैसे कि कभी रोये ही न हों।
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11:25, 11 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

शब्द जो साथ नहीं चलते
पेड़ों की ओट से देखते हैं हमारा चलना
और जब हम पहुँच जाते हैं एक जगह
वे चुपके से आ जाते हैं साथ-ऐसे
जैसे कहीं गए ही न हों

लोग जो साथ नहीं रोते
खिड़की की ओट में रोते हैं कातर होकर
धुँधलाई आँखों से
और हमारी ख़ुशी में आ जाते हैं हँसते
जैसे कि कभी रोए ही न हों ।