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"दिन अधमरा देखने / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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       कितनी भीड़ उतर आई
 
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       मुश्किल से साँवली सड़क की
 
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कल पर काम धकेल आज की
 
कल पर काम धकेल आज की
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चुटकुले बिखरे घुँघराले
 
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पाँव, पंख हो गए
 
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थकन की जंजीरों वाले
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       गंध पसीने की पथ भर
 
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       बतियाती घर आई
 
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11:39, 24 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

     दिन अधमरा देखने
      कितनी भीड़ उतर आई
      मुश्किल से साँवली सड़क की
      देह नज़र आई ।

कल पर काम धकेल आज की
चिन्ता मुक्त हुई
खुली हवाओं ने सँवार दी
तबियत छुइ-मुई

      दिन की बुझी शिराओं में
      एक और उमर आई ।

फूट पड़े कहकहे,
चुटकुले बिखरे घुँघराले
पाँव, पंख हो गए
थकन की ज़ंजीरों वाले

      गंध पसीने की पथ भर
      बतियाती घर आई