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"लौटते हुए / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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कटी-फटी ज़िन्दगी
 
कटी-फटी ज़िन्दगी
 
तिखने रख शरम के वहम
 
तिखने रख शरम के वहम
              लौट दिए हम
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                लौट दिए हम
 
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13:07, 24 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

लो—
सब कुछ जहाँ-तहाँ रख कर
लौटा दिए हम
देखेंगे पीछे मुड़ कर कभी
गढ़े हुए अपने परचम

हर छोटी चीज़ की तरह
खोजा है एक-एक पल
फिर ऐसे रख दिया
सँभाल कर
शीशी में ज्यों गंगाजल
जो कुछ भी था
उसे सहेज कर
बाँध कर किवाड़ों से
नियम-उपनियम
लौट दिए हम

हर सीढ़ी—
टूटी चूड़ी लगी
तलवे में काटने लगी
चौखट की दृष्टि अनमनी
मुझको दो हिस्सों में
बाँटने लगी
ले अपनी
कटी-फटी ज़िन्दगी
तिखने रख शरम के वहम
                लौट दिए हम