भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अमन वतन के बनल रहे बस / मनोज भावुक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज भावुक }} Category:ग़ज़ल <poem> अमन वतन के बनल रहे बस ह…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
KKGlobal}}
+
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=मनोज भावुक
 
|रचनाकार=मनोज भावुक
 
}}
 
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKVID|v=zazillrxdnk}}
 +
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 
 
अमन वतन के बनल रहे बस
 
अमन वतन के बनल रहे बस
 
हवा में थिरकन बनल रहे बस
 
हवा में थिरकन बनल रहे बस
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
सफर के मंजिल मिले, मिले ना
 
सफर के मंजिल मिले, मिले ना
 
नयन में सावन बनल रहे बस
 
नयन में सावन बनल रहे बस
 
 
<poem>
 
<poem>

14:28, 8 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

अमन वतन के बनल रहे बस
हवा में थिरकन बनल रहे बस
इहे बा ख्वाहिश वतन के धरती
वतन के कन-कन बनल रहे बस

हजार गम भी सहे के दम बा
तोहार चाहत बनल रहे बस
बनल रहीं हम हिया में तहरा
हिया के धड़कन बनल रहे बस

रहे न केहू वतन में बेघर
रहे न केहू वतन में भूखा
सभे के रोटी, सभे के कपड़ा
सभे के जीवन बनल रहे बस

नजर में देखत पता लगा लीं
कि उनका मन के हिसाब का बा
इहे तमन्ना बा आखिरी बस
नजर के दरपन बनल रहे बस

हजार सपना सजा के मन में
निकल पड़ल बा सफर में 'भावुक'
सफर के मंजिल मिले, मिले ना
नयन में सावन बनल रहे बस