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मैं राघव, मैं रहीम, मैं गुरुमुख
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फिर आ जाऊंगा लाठी थाम।
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खुल सकती है मेरी तीसरी आंख
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रुको!
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फिर सोच लो
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जिसमें बैठकर स्वयं काट डाला है तुमने
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गर्म लाल कुर्सियों से
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अन्यथा! जल जाओगे तुम
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खुद ही बांधी हथकड़ियों से।
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फेंक दो
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वे सोने-चांदी के वस्त्र
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और पहन लो-वही पुराने
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मोटे वस्त्र
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वरना! नग्न हो जाओगे
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उन सतियों के तेज से।
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फेंक दो
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टपनी हाथों से लाठियां
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अन्यथा! तुम्हारे द्वारा बांधे गऐ (जानवर)
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पलट भी सकते हैं
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तुम्हारी ही ओर
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सींगें तानकर।
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और यह भी समझ लो
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तुम्हारा बढ़ा (लंबा) हो जाना
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शाम की छाया जैसा है।
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तुम और लंबे हो सकते हो अभी जरूर
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पर तुम्हारा अंत आ पहुंचा है
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सूर्य डूब रहा है (तुम्हारा)
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खबरदार।
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मूल कुमाउनी कविता:
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खबरदार ! हुशियार !
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आ्ब और नैं !
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मिं आ्ब सुणंण लागि गो्यूं
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म्या्र कानोंक ढा्क
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तुमैरि गोइनैकि अवाजै्ल
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फा्ट नैं
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खुलि ग्येईं।
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म्यार हात
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हतकड़ि खिति
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तुम बा्दि न सका ऽ
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यं और लै फराङ है ग्येईं
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फैलि ग्येईं।
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तुमा्र अन्यौ-अत्याचारैल
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मिं डरि गोयूं
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य लै झन समझिया
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म्या्र आंखों पारि ला्गी
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सब तिर सै ल्हिणांक
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बणुवा्क जा्व
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फाटि ग्येईं।
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सावधान !
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अघिल ऊंण है पैली
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सोचि ल्हिओ ए यार आ्जि
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तुमा्र गुई जिबा्ड़ में छो्पी
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तिमुरी का्न
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पछ्याणि हा्लीं मैंल।
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मिं राघव, मिं रहीम, मिं गुरुमुख
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आ्ब खालि
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चाइयै न रूंल
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चुप लै न रूंल।
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हुशियार!
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फिरि कैं, क्वे द्रोपदी पा्रि
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कुआं्ख झन धरिया !
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मिं अर्जुन-मिं धनुष धारि
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ऐ जूंल मुकाबल में।
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खबरदार !
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अहिंसा कैं सितिल-पितिल
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कमजोर मानि
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जा्ंठ न मारिया कै कैं आ्ब
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मिं गांधि
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फिरि ऐ जूंल
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जां्ठ थामि।
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और खबरदार!
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मकैं सिदसा्द, घ्यामण समझि
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म्येरि संस्कृति
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म्येरि धर्ति कैं
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लुटणैकि चोरमार झन करिया
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मिं भोले ‘शंकर
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उघड़ि सकूं म्यर तिसर आं्ख
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है जा्ल तुमर नौंमेट।
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रुको!
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फिरि सोचि ल्हिओ
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कि है सकूं-कि करि बेर
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और नसि आ्ओ तलि
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उ हाङ बै
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जमैं भैटि का्टि हालौ तुमुल आफी
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आपंण कुकर्मनौंल।
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टोड़ि ल्हिओ उ ज्यौड़
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बा्दी रौछा जैल
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गरम लाल कुर्सि दगै
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अतर! भड़ी जाला तुम
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आपड़ै बा्दी हतकड़िल।
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ख्येड़ि दिओ
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उं सुन चांदिक लुकुड़
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और पैरि ल्हिओ-वी पुरां्ण
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कुथावै सई,
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नतर! नङा्ण है जला
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उं सतियौंकि राफैल।
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ख्येड़ि दिओ
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आपंण हा्तौंक जां्ठ
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अतर! तुमरै बा्दी
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पलटि लै सकनीं
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तुमारै उज्यांणि
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सीङ तांणि।
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और य लै समझि ल्हिओ
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तुमौर ठुल है जां्ण
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ब्याखुलिक स्योव जस छु
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तुम और ठुल है सकछा जरूण
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मंणि देर आ्जि
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पर तुमर अंत ऐ पुजि गो
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तुमर सूर्ज डुबणौ
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खबरदार !
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(उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस पर विशेष: यह कविता राज्य आन्दोलन के दौरान खटीमा-मसूरी व मुजफ्फरनगर कांडों के बाद लिखी गयी थी)

19:47, 15 अप्रैल 2012 का अवतरण

प्रिय Navin Joshi, कविता कोश पर आपका स्वागत है!

Swagatam.gif

कविता कोश हिन्दी काव्य को अंतरजाल पर स्थापित करने का एक स्वयंसेवी प्रयास है। इस कोश को आप कैसे प्रयोग कर सकते हैं और इसकी वृद्धि में आप किस तरह योगदान दे सकते हैं इससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण सूचनायें नीचे दी जा रही हैं। इन्हे कृपया ध्यानपूर्वक पढ़े।

  • यदि आप अपनी स्वयं की रचनाएँ कोश में जोड़ना चाहते हैं तो ऐसा करने के लिये आपको एक निश्चित प्रक्रिया के तहत आवेदन करना होगा। यह प्रक्रिया जानने के लिये देखें: नये नाम जोड़ने की प्रक्रिया। कृपया अपने सदस्य पन्ने पर अपनी रचनाएँ ना जोड़े -क्योंकि इस तरह जोड़ी गयी रचनाओं को हटा दिया जाएगा।

  • कविता कोश में आप स्वयं पहले से मौजूद किसी भी कविता कोश बदल सकते हैं या फिर नयी कवितायें जोड़ सकते हैं। कविता कोश का संचालन कविता कोश टीम नामक एक समूह करता है। रचनाकारों की सूची जैसे पन्ने केवल इस टीम के सदस्यों के द्वारा ही बदले जा सकते हैं।

  • यदि आप कोश में पहले से मौजूद रचनाओं में कोई ग़लती पाते हैं, जैसे कि वर्तनी की ग़लतियाँ (Spelling mistakes), तो कृपया उन ग़लतियों को सुधार दें। ऐसा करने के लिये हर पन्ने के ऊपर बदलें लिंक दिया गया है।

  • अगर आप यूनिकोड के अलावा किसी दूसरे हिन्दी फ़ॉन्ट (जैसे शुषा, कृति इत्यादि) में टाइप करना जानते हैं तो भी आप उस फ़ॉन्ट में रचनाएँ टाइप कर kavitakosh@gmail.com पर भेज सकते हैं। इन रचनाओं को यूनिकोड में बदल कर कविता कोश में जोड़ दिया जाएगा। लेकिन सबसे बढिया यही रहेगा कि आप हिन्दी यूनिकोड में टाइप करना सीख लें, यह बहुत आसान है!
  • यदि आप कोई वैबसाइट या ब्लॉग चलाते हैं -तो आप उस पर कविता कोश का लिंक दे कर कोश को अधिक से अधिक लोगो तक पहुँचाने में मदद कर सकते हैं। कविता कोश का लिंक है http://kavitakosh.org

  • अगर आप ग्राफ़िक डिज़ाइनिंग कर सकते हैं या आप विकि में बहुत अच्छी तरह काम करना जानते हैं तो आप कोश के लिये ग्राफ़िक्स इत्यादि बना सकते हैं और इसके रूप-रंग को और भी बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।

  • आप दूसरे लोगो को कविता कोश के बारे में बता कर इसके प्रसार में मदद कर सकते हैं। जितने अधिक लोग कविता कोश के बारे में जानेंगे उतना ही अधिक योगदान कोश में हो सकेगा और कोश तीव्रता से प्रगति करेगा।

खबरदार!

खबरदार! सावधान! होशियार! अब और नहीं! मैं अब सुनने लग गया हूं। मेरे कानों के दरवाजे तुम्हारी गोलियों की आवाजों से फटे नहंी और खुल गये हैं।

मेरे हाथ हथकड़ियां डाल तुम बांध नहीं सके ये और भी चौड़े हो गये हैं फैल गये हैं।

तुम्हारे अन्याय-अत्याचार से मैं डर गया यह भी न समझना मेरी आंखों पर लगे सब कुछ सह लेने के मकड़ियों जैसे जाल फट गये हैं।

सावधान! आगे आने से पहले सोच लो एक बार और तुम्हारी मीठी जीभ में छिपे तिमूर जैसे कांटे पहचान लिये हैं मैंने। मैं राघव, मैं रहीम, मैं गुरुमुख अब यूं ही देखता न रहूंगा चुप भी न रहूंगा।

होशियार। फिर कहीं, किसी द्रोपदी पर कुदृष्टि न डालना! मैं अर्जुन-मैं धनुर्धर आ जाऊंगा मुकाबले मैं।

खबरदार! अहिंसा को कमजोर मान लाठियां न भांजना फिर मैं गांधी फिर आ जाऊंगा लाठी थाम।

खबरदार! मुझे सीधा-सादा, भोला समझ मेरी संस्कृति मेरी धरती को छल से लूटने की कोशिश न करना। मैं भोले ‘शंकर खुल सकती है मेरी तीसरी आंख मिट जाऐगा तुम्हारा नाम।

रुको! फिर सोच लो क्या हो सकता है-क्या करके और उतर आओ नींचे उस टहनी से जिसमें बैठकर स्वयं काट डाला है तुमने अपने कुकर्मों से।

तोड़ लो वह रस्सियां बंधे हो जिनसे गर्म लाल कुर्सियों से अन्यथा! जल जाओगे तुम खुद ही बांधी हथकड़ियों से।

फेंक दो वे सोने-चांदी के वस्त्र और पहन लो-वही पुराने मोटे वस्त्र वरना! नग्न हो जाओगे उन सतियों के तेज से।

फेंक दो टपनी हाथों से लाठियां अन्यथा! तुम्हारे द्वारा बांधे गऐ (जानवर) पलट भी सकते हैं तुम्हारी ही ओर सींगें तानकर।

और यह भी समझ लो तुम्हारा बढ़ा (लंबा) हो जाना शाम की छाया जैसा है। तुम और लंबे हो सकते हो अभी जरूर पर तुम्हारा अंत आ पहुंचा है सूर्य डूब रहा है (तुम्हारा) खबरदार।

मूल कुमाउनी कविता:

खबरदार ! हुशियार ! आ्ब और नैं ! मिं आ्ब सुणंण लागि गो्यूं म्या्र कानोंक ढा्क तुमैरि गोइनैकि अवाजै्ल फा्ट नैं खुलि ग्येईं।

म्यार हात हतकड़ि खिति तुम बा्दि न सका ऽ यं और लै फराङ है ग्येईं फैलि ग्येईं।

तुमा्र अन्यौ-अत्याचारैल मिं डरि गोयूं य लै झन समझिया म्या्र आंखों पारि ला्गी सब तिर सै ल्हिणांक बणुवा्क जा्व फाटि ग्येईं।

सावधान ! अघिल ऊंण है पैली सोचि ल्हिओ ए यार आ्जि तुमा्र गुई जिबा्ड़ में छो्पी तिमुरी का्न पछ्याणि हा्लीं मैंल। मिं राघव, मिं रहीम, मिं गुरुमुख आ्ब खालि चाइयै न रूंल चुप लै न रूंल।

हुशियार! फिरि कैं, क्वे द्रोपदी पा्रि कुआं्ख झन धरिया ! मिं अर्जुन-मिं धनुष धारि ऐ जूंल मुकाबल में।

खबरदार ! अहिंसा कैं सितिल-पितिल कमजोर मानि जा्ंठ न मारिया कै कैं आ्ब मिं गांधि फिरि ऐ जूंल जां्ठ थामि।

और खबरदार! मकैं सिदसा्द, घ्यामण समझि म्येरि संस्कृति म्येरि धर्ति कैं लुटणैकि चोरमार झन करिया मिं भोले ‘शंकर उघड़ि सकूं म्यर तिसर आं्ख है जा्ल तुमर नौंमेट।

रुको! फिरि सोचि ल्हिओ कि है सकूं-कि करि बेर और नसि आ्ओ तलि उ हाङ बै जमैं भैटि का्टि हालौ तुमुल आफी आपंण कुकर्मनौंल।

टोड़ि ल्हिओ उ ज्यौड़ बा्दी रौछा जैल गरम लाल कुर्सि दगै अतर! भड़ी जाला तुम आपड़ै बा्दी हतकड़िल।

ख्येड़ि दिओ उं सुन चांदिक लुकुड़ और पैरि ल्हिओ-वी पुरां्ण कुथावै सई, नतर! नङा्ण है जला उं सतियौंकि राफैल।

ख्येड़ि दिओ आपंण हा्तौंक जां्ठ अतर! तुमरै बा्दी पलटि लै सकनीं तुमारै उज्यांणि सीङ तांणि।

और य लै समझि ल्हिओ तुमौर ठुल है जां्ण ब्याखुलिक स्योव जस छु तुम और ठुल है सकछा जरूण मंणि देर आ्जि पर तुमर अंत ऐ पुजि गो तुमर सूर्ज डुबणौ खबरदार !


(उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस पर विशेष: यह कविता राज्य आन्दोलन के दौरान खटीमा-मसूरी व मुजफ्फरनगर कांडों के बाद लिखी गयी थी)