"विनयावली / तुलसीदास / पद 191 से 200 तक / पृष्ठ 2" के अवतरणों में अंतर
छो (पद 191 से 200 तक / तुलसीदास/ पृष्ठ 2 का नाम बदलकर विनयावली / तुलसीदास / पद 191 से 200 तक / पृष्ठ 2 कर दिया गया ...) |
|
(कोई अंतर नहीं)
|
07:15, 17 जून 2012 के समय का अवतरण
पद संख्या 193 तथा 194
(193)
अजहुँ आपने रामके करतब समुझत हित होइ।
कहँ तू, कहँ कोसलधनी, तोको कहा कहत सब कोइ।1।
रीझि निवाज्यो कबहिं तू, कब खीझि दई तोहिं गारि।
दरपन बदन निहारिकै , सुबिचारि मान हिय हारि।2।
बिगरी जनम अनेककी सुधरत पल लगै न आधु ।
‘पाहि कृपानिधि ’ प्रेमसो कहे को न राम कियो साधु।3।
बालमीकि -केवट-कथा, कपि -भील-भालु -सनमान।
सुनि सनमुख जो न रामसों , तिहि को उपदेसहि ग्यान।4।
का सेवा सुग्रीव की, का प्रीति-रीति-निरबाहु।
जासु बंधु बध्यो ब्याध ज्यों , सो सुनत सोहात न काहू।5।
भजन बिभीषन को कहा, फल कहा दियो रधुराज।
राम गरीब -निवाजके बड़ी बाँह -बोलकी लाज।6।
जपहिं नाम रघुनाथ को, चरचा दूसरी न चालु।
सुमुख,सुखद, साहिब, सुधी, समरथ, कृपालु,नतपालु। 7।
सजल नयन , गदगद गिरा, गहबर मन, पुलक सरीर।
गावत गुनगन रामके केहिकी न मिटी भव-भीर।8।
प्रभु कृतग्य सरबग्य है, परिहरू पाछिली गलानि।
तुलसी तोसों रामसों कछु न जान-पहिचानि।9।
(194)
जे अनुराग न राम सनेही सों।
तौ लह्यों लाहु कहा नर-देही सो।
जो तनु धरि, परिहरि सब सुख, भये सुमति राम-अनुरागी।
सो तनु पाइ अघाइ किये अघ, अवगुन-उदधि अभागी।।
ग्यान, बिराग, जोग, जप, तप, मख, जग मुद-मग नहिं थोरे।
राम-प्रेमबिनु नेम जाय जैसे मृग -जल-जलधि-हिलोरे।।
लोक-बिलोकि, पुरान-बेद सुनि, समुझि-बूझि गुरू ग्यानी।
प्रीति-प्रतीति राम-पद -पंकज सकल-सुमंगल-खानी।।
अजहुँ जानि जिय, मानि हारि हिय, होइ पलक महँ नीको।
सुमिरू सनेहसहित हित रामहिं, मानु मतो तुलसीको।।