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"लाल्टू" के अवतरणों में अंतर

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सात कविताएँ
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{{KKGlobal}}
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==लाल्टू की रचनाएँ==
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[[Category:लाल्टू]]
  
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{{KKParichay
वह जो बार बार पास आता है<br>
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|चित्र=
क्या उसे पता है वह क्या चाहता है<br><br>
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|नाम= हरजिन्दर सिंह लाल्टू
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|उपनाम=लाल्टू
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|जन्मस्थान=भारत
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|कृतियाँ= एक झील थी बर्फ़ की (1990); डायरी में 23 अक्टूबर (2004) दोनों कविता संग्रह । भैया ज़िन्दाबाद (बाल कविताएँ) । घुघनी (कहानी संग्रह)
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|विविध= हिन्दी कविता मॆं एक चर्चित नाम । रूसी भाषा में कविताओं के अनुवाद । ख़ुद भी अंग्रेज़ी से लगातार अनुवाद करते हैं
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|जीवनी=[[लाल्टू / परिचय]]
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वह जाता है<br>
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*''' [[एक झील थी बर्फ़ की / लाल्टू]]''' (कविता संग्रह)
लौटकर नाराज़गी के मुहावरों <br>
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*''' [[डायरी में 23 अक्टूबर / लाल्टू]]''' (कविता संग्रह)
के किले गढ़<br>
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*''' [[वह जो बार-बार पास आता है / लाल्टू]]
भेजता है शब्दों की पतंगें<br><br>
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*''' [[कराची में भी कोई चांद देखता है / लाल्टू]]
 
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*''' [[चांद से अनगिनत इच्छाएँ / लाल्टू]]
मैं समझता हूँ मैं क्या चाहता हूँ<br>
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*''' [[मेरे लिए भी कोई / लाल्टू]]
क्या सचमुच मुझे पता है मैं क्या चाहता हूँ<br><br>
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*''' [[वह जो मेरा है / लाल्टू]]
 
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*''' [[मैं कौन हूँ ? तुम कौन हो ? / लाल्टू]]
जैसे चाँद पर मुझे कविता लिखनी है<br>
+
*''' [[दढ़ियल बरगद / लाल्टू]]
वैसे ही लिखनी है उस पर भी<br>
+
*''' [[एक दिन / लाल्टू]]
मज़दूरों के साथ बिताई एक शाम की<br>
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*''' [[निर्वासित औरत की कविताएँ / लाल्टू]]
चाँदनी में लौटते हुए <br>
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एक चाँद उसके लिए देखता हूँ<br><br>
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चाँदनी हम दोनों को छूती<br>
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पार करती असंख्य वन-पर्वत<br>
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बीहड़ों से बीहड़ इंसानी दरारों <br>
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को पार करती चाँदनी<br><br>
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उस पर कविता लिखते हुए <br>
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लिखता हूँ तांडव गीत<br>
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तोड़ दो, तोड़ दो, सभी सीमाओं को तोड़ दो।<br><br>
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कराची में भी कोई चाँद देखता है<br>
+
युद्ध सरदार परेशान<br>
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ऐेसे दिनों में हम चाँद देख रहे हैं<br><br>
+
 
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चाँद के बारे में सबसे अच्छी खबर कि<br>
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वहाँ कोई हिंद पाक नहीं है<br>
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चाँद ने उन्हें खारिज शब्दों की तरह कूड़ेदानी में फेंक दिया है।<br><br>
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आलोक धन्वा, तुम्हारे जुलूस में मैं हूँ, वह है<br>
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चाँद की पकाई खीर खाने हम साथ बैठेंगे<br>
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बगदाद, कराची, अमृतसर, श्रीनगर जा जा<br>
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अनधोए अंगूठों पर चिपके दाने चाटेंगे।<br><br>
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चाँद से अनगिनत इच्छाएँ साझी करता हूँ<br>
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चाँद ने मेरी बातें बहुत पहले सुन ली हैं<br>
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फिर भी कहता हूँ<br>
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और चाँद का हाथ<br>
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अपने बालों में अनुभव करता हूँ<br><br>
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चाँद ने कागज कलम बढ़ाते हुए<br>
+
कविताएँ लिखने को कहा है<br>
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सायरेन बज रहा है। <br><br>
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मेरे लिए भी कोई सोचता है<br>
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अँधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ<br>
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दूर खिड़की पर उदास खड़ी है। दबी हुई मुस्कान<br>
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जो दिन भर उसे दिगंत तक फैलाए हुए थी<br>
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उस वक्त बहुत दब गई है।<br><br>
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अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है।<br>
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उसके खयालों में मेरी कविताएँ हैं। सीमाएँ पार <br>
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करते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान।<br><br>
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वह मेरी हर कविता की शुरुआत।<br>
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वह काश्मीर के बच्चों की उदासी।<br>
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वह मेरा बसंत, मेरा नवगीत, <br>
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वह मुर्झाए पौधों के फिर से खिलने सी।<br><br>
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वह जो मेरा है<br>
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मेरे पास होकर भी मुझ से बहुत दूर है।<br>
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पास आने के मेरे उसके खयाल<br>
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आश्चर्य का छायाचित्र बन दीवार पर टँगे हैं,<br>
+
द्विआयामी अस्तित्व में हम अवाक देखते हैं<br>
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हमारे बीच की ऊँची दीवार।<br><br>
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ईश्वर अल्लाह तेरे नाम<br>
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अनजान लकीर के इस पार उस पार <br>
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उँगलियाँ छूती हैं<br>
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स्पर्श पौधा बन पुकारता है<br>
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स्पर्श ही अल्लाह, स्पर्श ही ईश्वर।<br><br>
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मैं कौन हूँ? तुम कौन हो?<br>
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मैं एक पिता देखता हूँ पितृहीन प्राण।<br>
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ग्रहों को पार कर मैं आया हूँ<br>
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एक भरपूर जीवन जीता बयालीस की बालिग उम्र<br>
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देख रहा हूँ एक बच्चे को मेरा सीना चाहिए<br><br>
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उसकी निश्छलता की लहरों में मैं काँपता हूँ<br>
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मेरे एकाकी क्षणों में उसका प्रवेश सृष्टि का आरंभ है<br>
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मेरी दुनिया बनाते हुए वह मुस्कराता है<br>
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सुनता हूँ बसंत के पूर्वाभास में पत्तियों की खड़खड़ाहट<br>
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दूर दूर से आवाज़ें आती हैं उसके होने के उल्लास में<br>
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आश्चर्य मानव संतान<br>
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अपनी संपूर्णता के अहसास से बलात् दूर<br>
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उँगलियाँ उठाता है, माँगता है भोजन के लिए कुछ पैसे।<br><br>
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मुड़ मुड़ उसके लिए दढ़ियल बरगद बनने की प्रतिज्ञा करता हूँ।<br>
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सन् २००० में मेरी दाढ़ी खींचने पर धू धू लपटें उसे घेर लेंगीं।<br>
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मेरी नियति पहाड़ बनाने के अलावा और कुछ नहीं।<br>
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उसकी खुली आँखों को सिरहाने तले सँजोता हूँ।<br>
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उड़नखटोले पर बैठते वक्त वह मेरे पास होगा।<br><br>
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युद्ध सरदारों सुनो! मैं उसे बूँद बूँद अपने सीने में सींचूँगा। <br>
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उसे बादल बन ढक लूँगा। उसकी आँखों में आँसू बन छल छल छलकूँगा।<br>
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उसके होंठों में विस्मय की ध्वनि तरंग बनूँगा। <br>
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तुम्हारी लपटों को मैं लगातार प्यार की बारिश बन बुझाऊँगा।<br><br>
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पहाड़ को नंगा करते वक्त तुमने सोचा न था <br>
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पहाड़-१<br>
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पहाड़ को कठोर मत समझो<br>
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पहाड़ को नोचने पर<br>
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पहाड़ के अाँसू बह अाते हैं<br>
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सड़कें करवट बदल<br>
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चलते-चलते रुक जाती हैं<br><br>
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पहाड़ को<br>
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दूर से देखते हो तो<br>
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पहाड़ ऊँचा दिखता है<br><br>
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करीब आओ<br>
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पहाड़ तुम्हें ऊपर खींचेगा<br>
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पहाड़ के ज़ख्मी सीने में<br>
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रिसते धब्बे देख<br>
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चीखो मत<br><br>
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पहाड़ को नंगा करते वक्त<br>
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तुमने सोचा न था<br>
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पहाड़ के जिस्म में भी<br>
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छिपे रहस्य हैं।<br><br>
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पहाड़-२<br>
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इसलिए अब<br>
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अकेली चट्टान को<br>
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पहाड़ मत समझो<br><br>
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पहाड़ तो पूरी भीड़ है<br>
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उसकी धड़कनें<br>
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अलग-अलग गति से<br>
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बढ़ती-घटती रहती हैं<br><br>
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अकेले पहाड़ का जमाना<br>
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बीत गया<br>
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अब हर ओर<br>
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पहाड़ ही पहाड़ हैं।<br><br>
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पहाड़-३
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पहाड़ों पर रहने वाले लोग<br>
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पहाड़ों को पसंद नहीं करते<br>
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पहाड़ों के साथ<br>
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हँस लेते हैं<br>
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रो लेते हैं<br>
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सोचते हैं<br>
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पहाड़ों पर आधी ज़िंदगी गुज़र गई<br>
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बाकी भी गुज़र जाएगी।<br><br>
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(मूल रचना: १९८८; एक झील थी बर्फ की - आधार प्रकाशन, १९९०)
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00:16, 8 अक्टूबर 2007 का अवतरण

लाल्टू की रचनाएँ

हरजिन्दर सिंह लाल्टू
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जन्म
निधन
उपनाम लाल्टू
जन्म स्थान भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ
एक झील थी बर्फ़ की (1990); डायरी में 23 अक्टूबर (2004) दोनों कविता संग्रह । भैया ज़िन्दाबाद (बाल कविताएँ) । घुघनी (कहानी संग्रह)
विविध
हिन्दी कविता मॆं एक चर्चित नाम । रूसी भाषा में कविताओं के अनुवाद । ख़ुद भी अंग्रेज़ी से लगातार अनुवाद करते हैं
जीवन परिचय
लाल्टू / परिचय
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