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"यों तो कालिंदी है काली / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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युगल छवि देखे ही बनती है
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यों तो कालिंदी है काली
उधर अधर झुकते मुरली पर, इधर भौंह तनती है
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किन्तु एक छवि से दीपित है तट की डाली-डाली
  
राधा की तो प्रीत निराली
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जब भी हम ये नयन उघाड़ें
'छाया क्यों यमुना ने पा ली'
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दिखती हों काँटों की झाड़ें
माला भी पहनें वनमाली
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किन्तु उन्हीं में तिरछे आड़े मिले कभी वनमाली
तुरत रार ठनती है
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पीताम्बर भी उसे न भाये 
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ले आई अबीर की झोली
नभ में श्याम घटा क्यों छाये
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राधा कभी खेलने होली
मोर मुकुट चरणों में आये
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नाची ग्वाल बाल की टोली बजा-बजा कर ताली
तब जाकर मनती है
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युगल छवि देखे ही बनती है
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माना कालिय भी दह में है
उधर अधर झुकते मुरली पर, इधर भौंह तनती है
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प्राण सदा रहते सहमे हैं पर
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मन के कुल राग थमे हैं  सुन कर धुन मतवाली
  
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यों तो कालिंदी है काली
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किन्तु एक छवि से दीपित है तट की डाली-डाली
 
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19:31, 29 अगस्त 2012 के समय का अवतरण


यों तो कालिंदी है काली
किन्तु एक छवि से दीपित है तट की डाली-डाली

जब भी हम ये नयन उघाड़ें
दिखती हों काँटों की झाड़ें
किन्तु उन्हीं में तिरछे आड़े मिले कभी वनमाली

ले आई अबीर की झोली
राधा कभी खेलने होली
नाची ग्वाल बाल की टोली बजा-बजा कर ताली

माना कालिय भी दह में है
प्राण सदा रहते सहमे हैं पर
मन के कुल राग थमे हैं सुन कर धुन मतवाली

यों तो कालिंदी है काली
किन्तु एक छवि से दीपित है तट की डाली-डाली