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"मधुबाला / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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* [[मधुबाला (कविता)/ हरिवंशराय बच्चन]]
 
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* [[प्याला / हरिवंशराय बच्चन]]
 
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* [[हाला / हरिवंशराय बच्चन]]
मैं मधुबाला मधुशाला की,<br>
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* [[बुलबुल / हरिवंशराय बच्चन]]
मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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* [[इस पार उस पार / हरिवंशराय बच्चन]]
मैं मधु-विक्रेता को प्यारी,<br>
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* [[पाँच पुकार / हरिवंशराय बच्चन]]
मधु के धट मुझ पर बलिहारी,<br>
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* [[पगध्वनि / हरिवंशराय बच्चन]]
प्यालों की मैं सुषमा सारी,<br>
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मेरा रुख देखा करती है<br>
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मधु-प्यासे नयनों की माला।<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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इस नीले अंचल की छाया<br>
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में जग-ज्वाला का झुलसाया<br>
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आकर शीतल करता काया,<br>
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मधु-मरहम का मैं लेपन कर<br>
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अच्छा करती उर का छाला।<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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मधुघट ले जब करती नर्तन,<br>
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मेरे नुपुर की छम-छनन<br>
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में लय होता जग का क्रंदन,<br>
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झूमा करता मानव जीवन<br>
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का क्षण-क्षण बनकर मतवाला।<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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मैं इस आंगन की आकर्षण,<br>
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मधु से सिंचित मेरी चितवन,<br>
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मेरी वाणी में मधु के कण,<br>
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मदमत्त बनाया मैं करती,<br>
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यश लूटा करती मधुशाला।<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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था एक समय, थी मधुशाला,<br>
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था मिट्टी का घट, था प्याला,<br>
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थी, किन्तु, नहीं साकीबाला,<br>
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था बैठा ठाला विक्रेता<br>
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दे बंद कपाटों पर ताला।<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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तब इस घर में था तम छाया,<br>
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था भय छाया, था भ्रम छाया,<br>
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था मातम छाया, गम छाया,<br>
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ऊषा का दीप लिये सर पर,<br>
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मैं आ‌ई करती उजियाला।<br>
+
मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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सोने सी मधुशाला चमकी,<br>
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माणित दॿयॿति से मदिरा दमकी,<br>
+
मधुगंध दिशा‌ओं में चमकी,<br>
+
चल पड़ा लिये कर में प्याला<br>
+
प्रत्येक सुरा पीनेवाला।<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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थे मदिरा के मृत-मूक घड़े,<br>
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थे मूर्ति सदृश मधुपात्र खड़े,<br>
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थे जड़वत प्याले भूमि पड़े,<br>
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जादू के हाथों से छूकर<br>
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मैंने इनमें जीवन डाला।<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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मझको छूकर मधुघट छलके,<br>
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प्याले मधु पीने को ललके ,<br>
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मालिक जागा मलकर पलकें,<br>
+
अंगड़ा‌ई लेकर उठ बैठी<br>
+
चिर सुप्त विमूर्छित मधुशाला।<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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प्यासे आि, मैंने आिका,<br>
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वातायन से मैंने िािका,<br>
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पीनेवालों का दल बहका,<br>
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उत्कंठित स्वर से बोल उठा,<br>
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‘कर दे पागल, भर दे प्याला!’<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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खॿल द्वार मदिरालय के,<br>
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नारे लगते मेरी जय के,<br>
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मिटे चिन्ह चिंता भय के,<br>
+
हर ओर मचा है शोर यही,<br>
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‘ला-ला मदिरा ला-ला’!,<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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हर एक तृप्ति का दास यहां,<br>
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पर एक बात है खास यहां,<br>
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पीने से बढ़ती प्यास यहां,<br>
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सौभाग्य मगर मेरा देखो,<br>
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देने से बढ़ती है हाला!<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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चाहे जितना मैं दूं हाला,<br>
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चाहे जितना तू पी प्याला,<br>
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चाहे जितना बन मतवाला,<br>
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सुन, भेद बताती हूँ अंतिम,<br>
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यह शांत नही होगी ज्वाला।<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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मधु कौन यहां पीने आता,<br>
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है किसका प्यालों से नाता,<br>
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जग देख मुझे है मदमाता,<br>
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जिसके चिर तंद्रिल नयनों पर<br>
+
तनती मैं स्वपनों का जाला।<br>
+
मैं मधुशाला की मधुबाला!<br>
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यह स्वप्न-विनिर्मित मधुशाला,<br>
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यह स्वप्न रचित मधु का प्याला,<br>
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स्वप्निल तृष्णा, स्वप्निल हाला,<br>
+
स्वप्नों की दुनिया में भूला <br>
+
फिरता मानव भोलाभाला।<br>
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मैं मधुशाला की मधुबाला!
+

17:12, 28 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण

मधुबाला
Madhubala.jpg
रचनाकार हरिवंशराय बच्चन
प्रकाशक राजपाल प्रकाशन
वर्ष
भाषा हिन्दी
विषय
विधा रुबाईयाँ
पृष्ठ 94
ISBN
विविध
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