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"फिर कर लेने दो प्यार प्रिये / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
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खो बैठा अपने हाथों ही | खो बैठा अपने हाथों ही | ||
मैं अपना कोष अपार प्रिये | मैं अपना कोष अपार प्रिये | ||
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11:50, 1 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
अब अंतर में अवसाद नहीं
चापल्य नहीं उन्माद नहीं
सूना-सूना सा जीवन है
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं
तव स्वागत हित हिलता रहता
अंतरवीणा का तार प्रिये ..
इच्छाएँ मुझको लूट चुकी
आशाएं मुझसे छूट चुकी
सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँ
मेरे हाथों से टूट चुकी
खो बैठा अपने हाथों ही
मैं अपना कोष अपार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये ..