"नवीन कल्पना करो / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली | |रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए | निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए | ||
− | |||
तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो, | तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो, | ||
− | |||
तुम कल्पना करो। | तुम कल्पना करो। | ||
− | |||
अब देश है स्वतंत्र, मेदिनी स्वतंत्र है | अब देश है स्वतंत्र, मेदिनी स्वतंत्र है | ||
− | |||
मधुमास है स्वतंत्र, चाँदनी स्वतंत्र है | मधुमास है स्वतंत्र, चाँदनी स्वतंत्र है | ||
− | |||
हर दीप है स्वतंत्र, रोशनी स्वतंत्र है | हर दीप है स्वतंत्र, रोशनी स्वतंत्र है | ||
− | |||
अब शक्ति की ज्वलंत दामिनी स्वतंत्र है | अब शक्ति की ज्वलंत दामिनी स्वतंत्र है | ||
लेकर अनंत शक्तियाँ सद्य समृद्धि की- | लेकर अनंत शक्तियाँ सद्य समृद्धि की- | ||
− | |||
तुम कामना करो, किशोर कामना करो, | तुम कामना करो, किशोर कामना करो, | ||
− | |||
तुम कल्पना करो। | तुम कल्पना करो। | ||
− | |||
− | |||
− | |||
तन की स्वतंत्रता चरित्र का निखार है | तन की स्वतंत्रता चरित्र का निखार है | ||
− | |||
मन की स्वतंत्रता विचार की बहार है | मन की स्वतंत्रता विचार की बहार है | ||
− | |||
घर की स्वतंत्रता समाज का सिंगार है | घर की स्वतंत्रता समाज का सिंगार है | ||
− | |||
पर देश की स्वतंत्रता अमर पुकार है | पर देश की स्वतंत्रता अमर पुकार है | ||
टूटे कभी न तार यह अमर पुकार का- | टूटे कभी न तार यह अमर पुकार का- | ||
− | |||
तुम साधना करो, अनंत साधना करो, | तुम साधना करो, अनंत साधना करो, | ||
− | |||
तुम कल्पना करो। | तुम कल्पना करो। | ||
− | |||
− | |||
हम थे अभी-अभी गुलाम, यह न भूलना | हम थे अभी-अभी गुलाम, यह न भूलना | ||
− | |||
करना पड़ा हमें सलाम, यह न भूलना | करना पड़ा हमें सलाम, यह न भूलना | ||
− | |||
रोते फिरे उमर तमाम, यह न भूलना | रोते फिरे उमर तमाम, यह न भूलना | ||
− | |||
था फूट का मिला इनाम, वह न भूलना | था फूट का मिला इनाम, वह न भूलना | ||
बीती गुलामियाँ, न लौट आएँ फिर कभी | बीती गुलामियाँ, न लौट आएँ फिर कभी | ||
− | |||
तुम भावना करो, स्वतंत्र भावना करो | तुम भावना करो, स्वतंत्र भावना करो | ||
− | |||
तुम कल्पना करो। | तुम कल्पना करो। | ||
+ | </poem> |
17:31, 6 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए
तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो,
तुम कल्पना करो।
अब देश है स्वतंत्र, मेदिनी स्वतंत्र है
मधुमास है स्वतंत्र, चाँदनी स्वतंत्र है
हर दीप है स्वतंत्र, रोशनी स्वतंत्र है
अब शक्ति की ज्वलंत दामिनी स्वतंत्र है
लेकर अनंत शक्तियाँ सद्य समृद्धि की-
तुम कामना करो, किशोर कामना करो,
तुम कल्पना करो।
तन की स्वतंत्रता चरित्र का निखार है
मन की स्वतंत्रता विचार की बहार है
घर की स्वतंत्रता समाज का सिंगार है
पर देश की स्वतंत्रता अमर पुकार है
टूटे कभी न तार यह अमर पुकार का-
तुम साधना करो, अनंत साधना करो,
तुम कल्पना करो।
हम थे अभी-अभी गुलाम, यह न भूलना
करना पड़ा हमें सलाम, यह न भूलना
रोते फिरे उमर तमाम, यह न भूलना
था फूट का मिला इनाम, वह न भूलना
बीती गुलामियाँ, न लौट आएँ फिर कभी
तुम भावना करो, स्वतंत्र भावना करो
तुम कल्पना करो।