"लीक पर वे चलें / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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− | हमें तो जो हमारी यात्रा से बने | + | लीक पर वे चलें जिनके |
− | ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे | + | चरण दुर्बल और हारे हैं, |
+ | हमें तो जो हमारी यात्रा से बने | ||
+ | ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं। | ||
− | साक्षी हों राह रोके खड़े | + | साक्षी हों राह रोके खड़े |
− | पीले बाँस के झुरमुट, | + | पीले बाँस के झुरमुट, |
− | कि उनमें गा रही है जो हवा | + | कि उनमें गा रही है जो हवा |
− | उसी से लिपटे हुए सपने हमारे | + | उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं। |
− | शेष जो भी हैं- | + | शेष जो भी हैं- |
− | वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ; | + | वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ; |
− | गर्व से आकाश थामे खड़े | + | गर्व से आकाश थामे खड़े |
− | ताड़ के ये पेड़, | + | ताड़ के ये पेड़, |
− | हिलती क्षितिज की झालरें; | + | हिलती क्षितिज की झालरें; |
− | झूमती हर डाल पर बैठी | + | झूमती हर डाल पर बैठी |
− | फलों से मारती | + | फलों से मारती |
− | खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा; | + | खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा; |
− | गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ, | + | गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ, |
− | वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले, | + | वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले, |
− | नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे | + | नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे |
− | शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल; | + | शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल; |
− | सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास | + | सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास |
− | जो संकल्प हममें | + | जो संकल्प हममें |
− | बस उसी के ही सहारें | + | बस उसी के ही सहारें हैं। |
− | लीक पर वें चलें जिनके | + | लीक पर वें चलें जिनके |
− | चरण दुर्बल और हारे हैं, | + | चरण दुर्बल और हारे हैं, |
− | हमें तो जो हमारी यात्रा से बने | + | हमें तो जो हमारी यात्रा से बने |
− | ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं । | + | ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं । |
10:45, 15 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं।
साक्षी हों राह रोके खड़े
पीले बाँस के झुरमुट,
कि उनमें गा रही है जो हवा
उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं।
शेष जो भी हैं-
वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ;
गर्व से आकाश थामे खड़े
ताड़ के ये पेड़,
हिलती क्षितिज की झालरें;
झूमती हर डाल पर बैठी
फलों से मारती
खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा;
गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ,
वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले,
नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे
शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल;
सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास
जो संकल्प हममें
बस उसी के ही सहारें हैं।
लीक पर वें चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं ।