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"गीत बनाने की ज़िद है / यश मालवीय" के अवतरणों में अंतर

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दीवारों से भी बतियाने की ज़िद है  
 
दीवारों से भी बतियाने की ज़िद है  
 
 
हर अनुभव को गीत बनाने की ज़िद है
 
हर अनुभव को गीत बनाने की ज़िद है
 
  
 
दिये बहुत से गलियारों में जलते हैं
 
दिये बहुत से गलियारों में जलते हैं
 
 
मगर अनिश्चय के आँगन तो खलते हैं
 
मगर अनिश्चय के आँगन तो खलते हैं
 
  
 
कितना कुछ घट जाता मन के भीतर ही
 
कितना कुछ घट जाता मन के भीतर ही
 
 
अब सारा कुछ बाहर लाने की ज़िद है
 
अब सारा कुछ बाहर लाने की ज़िद है
 
  
 
जाने क्यों जो जी में आया नहीं किया
 
जाने क्यों जो जी में आया नहीं किया
 
 
चुप्पा आसमान को हमने समझ लिया
 
चुप्पा आसमान को हमने समझ लिया
 
  
 
देख चुके हम भाषा का वैभव सारा
 
देख चुके हम भाषा का वैभव सारा
 
 
बच्चों जैसा अब तुतलाने की ज़िद है
 
बच्चों जैसा अब तुतलाने की ज़िद है
 
  
 
कौन बहलता है अब परी कथाओं से
 
कौन बहलता है अब परी कथाओं से
 
 
सौ विचार आते हैं नयी दिशाओं से
 
सौ विचार आते हैं नयी दिशाओं से
 
  
 
खोया रहता एक परिन्दा सपनों का
 
खोया रहता एक परिन्दा सपनों का
 
 
उसको अपने पास बुलाने की ज़िद है
 
उसको अपने पास बुलाने की ज़िद है
 
  
 
सरोकार क्या उनसे जो खुद से ऊबे
 
सरोकार क्या उनसे जो खुद से ऊबे
 
 
हमको तो अच्छे लगते हैं मंसूबे
 
हमको तो अच्छे लगते हैं मंसूबे
 
  
 
लहरें अपना नाम-पता तक सब खो दें
 
लहरें अपना नाम-पता तक सब खो दें
 
 
ऐसा इक तूफान उठाने की ज़िद है
 
ऐसा इक तूफान उठाने की ज़िद है

12:57, 15 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

दीवारों से भी बतियाने की ज़िद है
हर अनुभव को गीत बनाने की ज़िद है

दिये बहुत से गलियारों में जलते हैं
मगर अनिश्चय के आँगन तो खलते हैं

कितना कुछ घट जाता मन के भीतर ही
अब सारा कुछ बाहर लाने की ज़िद है

जाने क्यों जो जी में आया नहीं किया
चुप्पा आसमान को हमने समझ लिया

देख चुके हम भाषा का वैभव सारा
बच्चों जैसा अब तुतलाने की ज़िद है

कौन बहलता है अब परी कथाओं से
सौ विचार आते हैं नयी दिशाओं से

खोया रहता एक परिन्दा सपनों का
उसको अपने पास बुलाने की ज़िद है

सरोकार क्या उनसे जो खुद से ऊबे
हमको तो अच्छे लगते हैं मंसूबे

लहरें अपना नाम-पता तक सब खो दें
ऐसा इक तूफान उठाने की ज़िद है