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"मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर
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Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
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− | नई ज़मीं नया आसमाँ | + | नई ज़मीं नया आसमाँ मिल भी जाये |
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− | वो तेग़ मिल गई | + | वो तेग़ मिल गई जिससे हुआ है क़त्ल मेरा |
− | किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता | + | किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता |
− | वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे | + | वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे |
− | कि | + | कि जिनमें शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता |
− | जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ | + | जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ |
− | यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता | + | यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता |
− | खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में | + | खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में |
− | तुम्हारे चेहरे | + | तुम्हारे चेहरे-सा कुछ भी यहाँ नहीं मिलता |
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10:57, 10 मई 2013 के समय का अवतरण
मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ मिल भी जाये
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता
वो तेग़ मिल गई जिससे हुआ है क़त्ल मेरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता
वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिनमें शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता
जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ
यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता
खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे-सा कुछ भी यहाँ नहीं मिलता