भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
 
|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
 
}}
 
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता <br>
+
<poem>
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता <br><br>
+
मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
 +
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता
  
नई ज़मीं नया आसमाँ भी मिल जाये <br>
+
नई ज़मीं नया आसमाँ मिल भी जाये
नये बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता <br><br>
+
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता
  
वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मेरा <br>
+
वो तेग़ मिल गई जिससे हुआ है क़त्ल मेरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता <br><br>
+
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता
  
वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे <br>
+
वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता<br><br>
+
कि जिनमें शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता
  
जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ <br>
+
जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ
यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता <br><br>
+
यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता
  
खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में <br>
+
खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता <br><br>
+
तुम्हारे चेहरे-सा कुछ भी यहाँ नहीं मिलता
 +
</poem>

10:57, 10 मई 2013 के समय का अवतरण

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता

नई ज़मीं नया आसमाँ मिल भी जाये
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

वो तेग़ मिल गई जिससे हुआ है क़त्ल मेरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता

वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिनमें शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ
यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे-सा कुछ भी यहाँ नहीं मिलता