भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पहुँच के बाहर / मनोज कुमार झा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज कुमार झा }} {{KKCatKavita}} <poem> मति यहीं ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:00, 26 जून 2013 के समय का अवतरण

मति यहीं है, गति यहीं है, द्युति यहीं है,
अति यहीं है, अति यहीं है
इधर आओ, पंथ मेरा सबसे बढ़िया
इसे अपना भी बनाओ।

क्यों सुनू मैं बत-पिसानी, क्यों करूँ मैं गप-कुटानी
       खेत लह-लह हुलस रहा है
       मित्र नभ में बिहस रहा है
बाट ताक रहे हैं बच्चे, तोड़ने दो साग बथुआ
       जो कहीं अन्यत्र गाओ।